ज़िन्दगी की गहराई जो समझना चाहो
तो पहले उसकी लम्बाई की उलझन से निकलो।
न फूलों को झुक के देखा, न झूलों को रुक के देखा
ज़िन्दगी फिर भी जी है, इस सुलझन से निकलो।।
छोटे से पिल्ले ने जो पूंछ हिलायी
पुचकारो उसे, उस प्रियेतम को समझो।
न इमली ही तोड़ी, न तुमने अमिया बटोरी
फ़िर क्या है गाया उस सरगम को समझो।।
बारिश के पानी में की न जो छपछप
दिल में पड़ते हुए सूखे को जानो।
लटपट सी भूख , तुम्हारी छटपट सी भूख
अपने अंदर मरते हुए भूखे को जानो।।
कहीं गर न जाना तुमने जो ये सब
अब तक जो भटके उस दर दर को देखो।
आगे कभी पीछे, झाकों दायें कभी बाएं
होती हुई ज़िन्दगी जर्जर को देखो।।