सीता स्वयंवर काहे कीजे
सभी तो रावण जैसे हैं।
पढ़े लिखे हैं, दशानन हैं
अक्ल के ऐसे वैसे हैं।।
काम में सभी के हाथ बझे हैं
शिव धनुष कौन तोड़ेगा।
सज धज के जो बाहर निकली
तुम्हे नहीं कोई छोड़ेगा।।
वरमाला के फूल सुखा दो
रंग इनके सब काले हैं।
मुछों पे है जंग लगी
और लगे मुँह पे ताले हैं।।
लक्ष्मण रेखा के दाएरे छोटे हैं
उसके बाहर आज़ादी है।
उस हवा में साँस न लेना
वहाँ हैवानों की आबादी है।।
पकड़ी गई तो लाज बचाने
गरुड़ यहाँ न पहुँचेंगे।
गिद्ध है सारे , गरुड़ नहीं हैं
मांस तुम्हारा नोचेंगे।।
आधी अधूरी कहीं बच गयी तुम
तो रोज़ परखी पकड़ी जाओगी।
अभागी, बेचारी, अबला संबोधन मे
निर्भया बन जकड़ी जाओगी।।
सभी तो रावण जैसे हैं।
पढ़े लिखे हैं, दशानन हैं
अक्ल के ऐसे वैसे हैं।।
काम में सभी के हाथ बझे हैं
शिव धनुष कौन तोड़ेगा।
सज धज के जो बाहर निकली
तुम्हे नहीं कोई छोड़ेगा।।
वरमाला के फूल सुखा दो
रंग इनके सब काले हैं।
मुछों पे है जंग लगी
और लगे मुँह पे ताले हैं।।
लक्ष्मण रेखा के दाएरे छोटे हैं
उसके बाहर आज़ादी है।
उस हवा में साँस न लेना
वहाँ हैवानों की आबादी है।।
पकड़ी गई तो लाज बचाने
गरुड़ यहाँ न पहुँचेंगे।
गिद्ध है सारे , गरुड़ नहीं हैं
मांस तुम्हारा नोचेंगे।।
आधी अधूरी कहीं बच गयी तुम
तो रोज़ परखी पकड़ी जाओगी।
अभागी, बेचारी, अबला संबोधन मे
निर्भया बन जकड़ी जाओगी।।
2 comments:
I'm in awe Jijaji. This is one of the most wonderful n thoughtful pieces of poetry I've read in recent times. Beautifully put together ;)
Thanks Mansi. Will keep provoking thoughts. Watch this space!
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