सबरी के बेर जूठे थे , मीठे थे
खा के वही तो राम रावण हराए थे।
जो सीता न होतीं तो राम राज्य न होता
वो धरती समाई, ये सरयु समाए थे।
गैया ने मैया बन दूध बहाया था
तो ही तो कान्हा किसना बने थे।
जो राधा न होतीं तो श्याम न होता
वो जो मीरा की तृष्णा बने थे।
बैठो ज़रा ये कहानी सुनो
की कैसे बना ये ताज़महल।
मुमताज़ न होती तो ये पत्थर ही होता
फ़िर कहाँ तस्वीर खिंचवाते तुम कल।
रानी झाँसी लड़ी थी, ग़दर हुआ था
फ़िर तो तिरंगा लहराना ही था।
जब कण कण में दुर्गा , मन मन में काली हो
फ़िर तो विमेंस डे मनानाही था।
खा के वही तो राम रावण हराए थे।
जो सीता न होतीं तो राम राज्य न होता
वो धरती समाई, ये सरयु समाए थे।
गैया ने मैया बन दूध बहाया था
तो ही तो कान्हा किसना बने थे।
जो राधा न होतीं तो श्याम न होता
वो जो मीरा की तृष्णा बने थे।
बैठो ज़रा ये कहानी सुनो
की कैसे बना ये ताज़महल।
मुमताज़ न होती तो ये पत्थर ही होता
फ़िर कहाँ तस्वीर खिंचवाते तुम कल।
रानी झाँसी लड़ी थी, ग़दर हुआ था
फ़िर तो तिरंगा लहराना ही था।
जब कण कण में दुर्गा , मन मन में काली हो
फ़िर तो विमेंस डे मनानाही था।
3 comments:
Wonderful...
Beautiful
Beautiful. So sensitive and with such depth!
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