एक अल्फ़ाज़ हम खींचते रहे
के बातें अपनी हो न कम ,
कुछ नुक़्ते टूट कर गिर पड़े ,
कुछ लफ्ज़ बिखर गए यूंही कहीं।
पुरानी यादों ने फिर यक़ीन दिलाया हमे
आँखों ही आँखों में भी बातें हुआ करती हैं।
हर सांस में कुछ बोल हैं ,
हर आह में हैं कविताएँ ,
एक ठंडी सी बेंच हो,
एक गर्म सी धूप हो
फ़िर उँगलियों ही उँगलियों में
मुलाकातें हुआ करती हैं।
बाल पक गए,
बचपन बच्चों में बाँट दिया,
चंद कागज़ के टुकड़ों की खातिर
शनिवार भी काम किया
फिर भी दिल के कुछ कोनों में
शरारतें हुआ करतीं हैं।
के बातें अपनी हो न कम ,
कुछ नुक़्ते टूट कर गिर पड़े ,
कुछ लफ्ज़ बिखर गए यूंही कहीं।
पुरानी यादों ने फिर यक़ीन दिलाया हमे
आँखों ही आँखों में भी बातें हुआ करती हैं।
हर सांस में कुछ बोल हैं ,
हर आह में हैं कविताएँ ,
एक ठंडी सी बेंच हो,
एक गर्म सी धूप हो
फ़िर उँगलियों ही उँगलियों में
मुलाकातें हुआ करती हैं।
बाल पक गए,
बचपन बच्चों में बाँट दिया,
चंद कागज़ के टुकड़ों की खातिर
शनिवार भी काम किया
फिर भी दिल के कुछ कोनों में
शरारतें हुआ करतीं हैं।
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