बदलाओ की एक चौखट लाँघ
फिर से निकले धूप में हम,
न सूरज हमें पिघला सका
न धरती ने निगला हमे।
रास्ता सामने था नहीं
पर पैरों को मस्ती चढ़ी थी,
और भुजाओं में जोश इतना
कि मन मस्त झोला उठा लिया।
हर कोई जो अपना सा हमे
वही तो रास्ता रोके खड़ा था,
और सांस का आलम यूँ था कि
आँधियों सी बह रही थी।
डराया हमे , धमकाया हमे
हज़ारों उम्मीदों का वास्ता दिया,
पर हम तो इतने बह चले थे
कि निकल पड़े , बस चल पड़े।
फिर से निकले धूप में हम,
न सूरज हमें पिघला सका
न धरती ने निगला हमे।
रास्ता सामने था नहीं
पर पैरों को मस्ती चढ़ी थी,
और भुजाओं में जोश इतना
कि मन मस्त झोला उठा लिया।
हर कोई जो अपना सा हमे
वही तो रास्ता रोके खड़ा था,
और सांस का आलम यूँ था कि
आँधियों सी बह रही थी।
डराया हमे , धमकाया हमे
हज़ारों उम्मीदों का वास्ता दिया,
पर हम तो इतने बह चले थे
कि निकल पड़े , बस चल पड़े।
No comments:
Post a Comment