Saturday, July 12, 2014

बदलाओ की एक चौखट

बदलाओ  की एक चौखट लाँघ
फिर से निकले धूप में हम,
न सूरज हमें  पिघला सका
न धरती ने निगला हमे।

रास्ता सामने था नहीं
पर पैरों को मस्ती चढ़ी थी,
और  भुजाओं में जोश इतना
कि  मन  मस्त झोला उठा लिया।

हर  कोई जो अपना सा हमे
वही तो रास्ता रोके खड़ा था,
और सांस का आलम यूँ था कि
आँधियों सी बह रही थी।

डराया  हमे , धमकाया हमे
हज़ारों उम्मीदों का वास्ता दिया,
पर हम तो इतने बह चले थे
कि निकल पड़े , बस चल  पड़े। 
 

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