Sunday, November 30, 2014

सामने जलती चिता हो मेरी

हर कदम चलो तुम ऐसे,
के आंदोलन का एहसास हो,
पर हर कदम रखो तुम ऐसे,
न टूटी एक घास हो।

हर पल तुम जियो की जैसे,
कुछ जी लेने की प्यास हो ,
हर पल मगर जियो तुम ऐसे
के हर पल ली एक साँस हो।

कश्ती दरिया में यूँ खेना मांझी,
मानो समन्दर की तलाश हो,
पर दरिया के इस आलिंगन में कश्ती को,
किनारे का भी आभास हो।

पल पल पल पल के इस जीने में ,
मौत का पल भी ख़ास हो,
सामने जलती चिता हो मेरी,
और पीछे लिखा इतिहास हो। 

Written on November 17th

एक अल्फ़ाज़ हम खींचते रहे
के बातें अपनी हो न कम ,
कुछ नुक़्ते टूट कर गिर पड़े ,
कुछ लफ्ज़ बिखर गए यूंही  कहीं।
 पुरानी यादों ने फिर यक़ीन दिलाया  हमे
आँखों ही आँखों में भी बातें हुआ करती हैं।

हर सांस में कुछ बोल हैं ,
हर आह में हैं कविताएँ ,
एक ठंडी सी बेंच हो,
एक गर्म सी धूप हो
फ़िर उँगलियों ही उँगलियों में
मुलाकातें हुआ करती हैं।

बाल पक गए,
बचपन बच्चों में बाँट दिया,
चंद कागज़ के टुकड़ों की खातिर
शनिवार भी काम किया
फिर भी दिल के कुछ कोनों में
शरारतें हुआ करतीं हैं।


 

Saturday, November 29, 2014

उन्नीस अगस्त की एक रचना

एक छोटी सी ज़िन्दगी में
उम्र भर का हो एहसास,
इसमें इतनी जान ऐ जानम,
ख़ुदा ने है डाली या तुम ही ख़ुदा हो।

एक पलक  के सपने में कितनी हैं बातें
लम्हों की कड़ियों में, कितने है बंधन ,
पलकों को हमने रोके रखा है
ख्वाबों के दरम्यां,न यादें जुदा हों।

यादों के दरिया में यूँ ,
पत्थर न फेंकों तुम ,
गर तूफ़ान उठे तो किनारे बहेंगे
गर किनारे बहे तो सब नजारें बहेंगे।

ज़िन्दगी ने फिर कहा , आ तेरे लब चूम लूँ ,
और दो फूलों ने फिर आलिंगन किया।
बस तितलियाँ यूँ ही पलकती रहें,
कोयल की कूहू न गुमशुदा हो।



 

Saturday, August 9, 2014

लुटे तन और टूटे मन को जो ढक दे, वो कपड़ा ही झंडा है बढ़िया।

सातों रंग भगवान के हैं ,
फ़िर कौन सा पहनू आज पिया ,
आज हरियाली ओढूँ की मैं,
बन जाऊं जोगन पहन केसरिया।

श्वेत रंग तो इ उमर में
हो सकता ना पहचानू मैं,
चहु दिशा है खून की होली,
न्याय चक्र न जानू मैं।

इ दिन न वो है,इ देश वो ना है
जहाँ मिले मोहे सांवरिया।

जन गण मंगल अभी है बाकी
आज भी मैली गंगा है,
घर-घर-बस्ती एक अलग है झाँकी
यहाँ कहाँ तिरंगा है।

साफ़ मन का कोई रंग चढ़ा ले
वही रंग फिर रंगा है बढ़िया।

और देखो तिरंगे के पीछे कैसे
आज हर कोई मुँह छुपाये है ,
कैसे कैसे , जाने कहाँ कहाँ
चवन्नी भर देशभक्ति लहराए है.

लुटे तन और टूटे मन को जो ढक दे
वो कपड़ा ही प्रिय झंडा है बढ़िया।




 

Thursday, July 31, 2014

बातें कुछ अनकही सी

मेरा जहाँ है आज अलग
माँ का अलग है आज जहाँ ,
तारे मगर सब एक ही हैं
एक ही है आसमान।

सारे लम्हे साथ जिये हम,
ये तो मुमकिन ही नहीं
एक चाय और याद करें हम
पुरानी होली और रमज़ान।

नीले पीले गुलाबी स्वेटर
मख्खन जीन्स की एक वो पैंट
चाऊमीन के स्टॉल, पंजाबी वाले
दुर्गा पूजा कि अनोखी शान । 

एक गर्म रोटी, रसोई में जो खायी थी,
एक भीगी सी शर्दी, एक तंग रज़ाई थी,
एक गीले गोबर का फर्श ,
एक छोटा सा अपना मकान।।





 

Sunday, July 27, 2014

कुछ वक़्त में नया सा है

कुछ वक़्त में नया सा है,
कुछ रक्त में नया सा है,
कुछ मंज़िलें हैं और भी
एक रास्ता नया सा है।

पड़ाओ तुम उखाड़ लो
अंगड़ाइयाँ तुम झाड़ लो,
रौशनी भी नयी सी है
और सूर्योदय नया सा है ।

बिस्तरें तुम संभाल लो
एक चाय तुम उबाल लो,
कुछ बिस्किटें नयी सी हैं
गुड़ का स्वाद नया सा है।

फेफड़ों में भर लो साँस
दिल में एक नयी सी आस
पाँवों के है नये निशाँ
जोश कुछ नया सा है।




 

Wednesday, July 23, 2014

कोयल की कुहू इबादत लगी

अल्लाह भी मेरा, मेरा है राम
बन्दे की बंदगी मेरा है काम
जहां घुटने टिकाए हमने ऐ दोस्त ,
वो ज़मीन ही मस्ज़िद हमारी हुई।

कुछ आँसू है पोछे, मुस्कान बटोरे
इन्सानियत के हमने रोज़े रखे ,
फ़िर तो हर लौ , हर रौशनी
हमे चाँद ही सी लगी।

माँ ने कहा था एक बार हमे ,
स्याही का मज़हब है होता अनोखा,
चली थी वो गीता में हिन्दू मगर
कुराण जा बसी तो मुसलमां हुई।

अनजानों ने आज़ानों में ढूँढा उसे ,
पत्थर के भगवानों में ढूँढा उसे ,
प्रभाष जो बैठा फूलों में , झूलों में ,
कोयल की कुहू इबादत सी लगी। 

Sunday, July 13, 2014

मौसम

फुहारों, बौछारों, त्योहारों का मौसम
दिल में बजते झंकारों का मौसम,
तितलियों के पलकने का, फूलों के महकने का
जवानी के जोशीले कुंवारों का मौसम।

बादल के गरजन में लिपटने का मौसम
फ़िर शर्म से सिकुड़ने - सिमटने का मौसम,
अमिया के पकने का, चिड़िया चहकने का,
चूड़ियों, बिंदियों के बाज़ारों का मौसम ।

चाय, पकोड़े, समोसों का मौसम
मनचले, मतवाले मधहोशों का मौसम,
जाम के छलकने का, यूँ ही बहकने का,
उमड़ती ख्वाहिशें हज़ारों का मौसम।

कुछ सास, कुछ साली, घरवाली का मौसम,
दिल में उमड़ती क़व्वाली का मौसम
रिश्ते समेटने का, कुछ यूँ ही बैठने का,
बनते, बहलते संसारों का मौसम।





 

Saturday, July 12, 2014

बदलाओ की एक चौखट

बदलाओ  की एक चौखट लाँघ
फिर से निकले धूप में हम,
न सूरज हमें  पिघला सका
न धरती ने निगला हमे।

रास्ता सामने था नहीं
पर पैरों को मस्ती चढ़ी थी,
और  भुजाओं में जोश इतना
कि  मन  मस्त झोला उठा लिया।

हर  कोई जो अपना सा हमे
वही तो रास्ता रोके खड़ा था,
और सांस का आलम यूँ था कि
आँधियों सी बह रही थी।

डराया  हमे , धमकाया हमे
हज़ारों उम्मीदों का वास्ता दिया,
पर हम तो इतने बह चले थे
कि निकल पड़े , बस चल  पड़े। 
 

Saturday, June 28, 2014

airport ki ek raat

It can be real fun stuck at an airport in an unearthly hour. Otherwise handsome people lying around in ungainly pose, snoring away, blissfully unaware of their inadequacy in the beauty sweep stake. Then there are those who continue to be somehow relevant to the world at 2.30am, urgently typing away that e-mail they are sure someone will read, appreciate, respond to and act upon. The world continues to turn. Across from where one sits, there is this baby, wide eyed, pink nosed, as far removed from sleep as David was from Goliath's nose. Then there is this girl, arguably beautiful, perched at the edge of her seat, pink delicate loafers dangerously and carelessly slipped on on her feet. Yes, life can be interesting at unGodly hours. Of course.

Saturday, June 14, 2014

न हिन्दू , न मुसलमां है मेरा चाँद

कभी सोचा कि किसकी पूजा होती है  कैसी
के अलग अलग मन्दिर  में जाते  हैं सब।
जब  डुबकी गंगा मे लगाए  है पण्डित,
मुर्गा देता देखो बांग गज़ब।

और यही नहीं है बात अनोखी
और पूजारी है बिचरे  ब्रम्हाण्ड।
कि देखो  है कैसा सबका  ये संगी,
न हिन्दू , न मुसलमां है मेरा चाँद।

देखो कैसा रंग चढ़ा है,
उजला उजला सौम्य बहोत। 
क्या शर्माता ईद में ये है
और क्या इतराता करवाचौथ।

हाँ , न  हिन्दू , न मुसलमां है मेरा चाँद,
पर क्यूँ  हिन्दू  न मुसलमां है मेरा चाँद।





 

Tuesday, April 29, 2014

तोड़ दो ताजमहल तुम मेरे दोस्तों

तोड़ दो ताजमहल तुम मेरे दोस्तों,
बनाया  इसे  एक  मुसलमां  ने है।
प्राचीन  ग्रंथों में  लिखा  है  कहीं,
कि  मोहब्बत  के माथे  पे  तिलक लगा है।

जला  दो ग़ालिब  के  नग़मे  सभी,
कमबख्त  क्यूँ  कर  प्यार  की  दुहाई  है  देता।
कविताएँ  दफ़ना  दो हर  उस  शायर की,
जिसके मस्ज़िद मे शिव और  मन्दिर में ख़ुदा है ।

खूबसूरती  को  बेदर्दी  से  कुचलोगे  जब,
फिर मज़हब  के  अनोखे  फूल  खिलेंगे।
अभी  तो हमारे  आँगन  में दोस्त ,
इश्क  का  बेकार  बागीचा  लगा  है।।




 

Musings...

बाल  पकते गए , ज़वानी  हाथ  से  फिसलती  रहीं ,
हम  फ़िर भी  बचपन  की  ऊँगली  पकड़  कर  चलते  रहे।

कुछ  ख्वाब  ऊंघ  रहे  थे  चौखट  पे  बैठ ,
और  अरमान  ऐसे  थे   कि करवट  बदलते  रहे।

जान  आती  कहाँ  से  है   जोशीले  साँसों  में ,
कि  ठहाके  फेफड़ों  में  उबलते  रहे।

और  बनाओ  हमें  न  सिकंदर  दोस्तों ,
हम तो  यूँ  ही  यलग़ारों  में  बहलते  रहें।

Tuesday, April 1, 2014

zindagi ko to bahna hi hai!

बीते  हुए  कल  की  यादें  बसी  हैं  इनमें ,
ज़ुल्फ़ों  की  सफ़ेदी  को  यूँ  छुपाया  न  कीजे।

त्वचा  की  हर  सिलवट मे बसेरा  है  मेरी  छुअन  का,
की  याद  उन्हे कर  के  यूँ  शर्मायान  कीजे।

कभी रूठने  मनाने  का  सिलसिला  जी  के  देंखे ,
यूँ  हमे देख  के हमेशा  मुस्कुराया  न  कीजे।

साख़  से  सूखे  पत्ते  से  गिर  जायेंगे  एक  दिन ,
मौत  जो  सच  है  उस  से  दामन  छुड़ाया  न  कीजे।


Tuesday, March 25, 2014

Can't think of a title

When night casts its sickly shadows,
And day ends a li'l too slow,
There is one other restless like me
As the lights show in yon balcony.

A night, however dark begun
Is a message that a day was done,
Embrace the night, let go the day
No point, no fun to ask to stay.
Droopy lashes and tearful eyes
Tell the story of the sad demise,
Of another day, like another day
And another day, yet another day.

Come barefoot walk on the dew,
And start a day afresh, a new,
Let them know, here's the man
Who said he could, and yes he can.

Monday, March 24, 2014

kaash kabhi aisa hota

काश  कभी  ऐसा  भी  होता,
के ख्वाबों  के बाग़ीचे  होते।
हर  सूखे  ख्वाब  का  गुलदस्ता फ़ेंक
नए  ख्वाब  सज़ा  लेते  हम।

दो  पत्थर  मार  तोड़  लेते  ख्वाब
कुछ  पके  हुए , कुछ  अधकच्चे  से।
कुछ  लार  टपका , कुछ  नमक  लगा
अमिया  ख्वाबों  की  खा  लेते  हम।

दो  रस्सी  बाँध  एक  शाख  पे  हम
ख्वाबों  के  झूले  सज़ा  लेते।
कुछ ख्वाबों  के  गाने गुनगुनाते  और
कुछ गज़लें  ख्वाबों की  गा  लेते  हम।

ऐसा  बाग़ीचा  एक  ही  है  पर
वो दिल  का हमारा  कोना है।
दो  दिल होते  सीने  मे  तो
हर  ख्वाब  की  कॉपी  बना  लेते  हम।




Saturday, March 22, 2014

Vote India!

Revolutions in our hearts mean nothing, if not followed by Candles in our hands and Journeys in our feet!

So if all of us believe that there are things to change in this country, if we believe that there are many things going wrong for us and strong, decisive leadership is the way out of this mess, then we need to Vote.  

If we believe that this country is not doing enough to keep its women safe and it’s not doing enough to provide decent education and wholesome meals to its kids, then we need to Vote.

If we believe that criminals take up space where honest men belong, and we believe that poverty is not because we don’t have enough resources, just that we don’t have enough will then we need to Vote.

If we believe that teaching a man to fish is far more important than doling out fish to him, then we need to Vote.

Despite its many shortcomings, India has a vibrant, participative, engaging democracy. If you are going to spend your Voting Holiday - mind you, it’s a day to fulfill your constitutional responsibility. IT.IS.NOT.A.HOLIDAY - watching a movie at the mall, remember that the mall and the movie of choice exist because we are a democracy. Please don’t endanger it by not Voting and thereby ensuring default election of someone who is not suitable.

If you are going to find the long weekend very enticing to take a well-deserved vacation, road trip, etc. Please remember that vacations are a pipe dream and road trips can cost you your life in many parts of the world (and some parts of India).

Don’t give up this opportunity to preserve our democracy.

Over the last two decades, the election commission has worked hard to make voting as comfortable an exercise as possible. We are a large country, it’s not always easy to reach out to all of us all the time, but these guys are doing their bit. It’s time we did out bit.

Go to the poll booth early, exercise your franchise and then and only then by all means watch that movie, take that vacation, go to that mall or have that Beer.

 
Issued in Public Interest by a Khaas Admi (Lets not carry our "aam"ness on our sleeves, we are all very very special!)

Friday, March 7, 2014

Here's a little love on Women's day

सबरी  के  बेर जूठे थे , मीठे थे
 खा के वही तो राम रावण हराए थे। 
जो सीता न होतीं तो राम राज्य न होता
वो धरती समाई, ये सरयु समाए थे।

गैया ने मैया बन दूध बहाया था
 तो ही तो कान्हा किसना बने थे।
जो राधा न होतीं तो श्याम न होता
वो जो मीरा की तृष्णा बने थे।

बैठो ज़रा ये कहानी सुनो
की कैसे बना ये ताज़महल।
मुमताज़ न होती तो ये पत्थर ही होता
फ़िर कहाँ तस्वीर खिंचवाते तुम कल।

रानी झाँसी लड़ी थी, ग़दर हुआ था
फ़िर तो तिरंगा लहराना ही था।
जब कण कण में दुर्गा , मन  मन  में काली हो
फ़िर  तो  विमेंस डे मनानाही था।


Tuesday, March 4, 2014

Railway Station

I stand there, watching trains come, stand, urinate, defecate and leave. If you want to understand the agonies and ecstasies of a railway station, that is me, try going about your daily business while covered freshly pooped, green and slimy human waste. Urgh!

Krishna said in Bhadwad Gita (here I am guessing he never had someone poo on him!) "Do your Karma, forget the fruits." Unfortunately for me, when it comes to railway stations, people tend to do the karma AFTER having the fruits! and roasted groundnuts, and vadapav, and jhaalmuri.

Try being the railway station when the daughter pretends to be docile and meek and obedient as both the parents excrete instructions after instructions after instructions.

"Poori-sabzi is there in that box. There's pickle too. Kha Lena!"

"Ok Ma!"

If the AC works, the Poori-sabzi will last the journey, if the AC does not work, this will be the last journey!

"Don't talk to strangers."

"Have you chained your bags?"

And so it goes on....

Monday, March 3, 2014

Mental Floss!

There they are, smelly, fibrous, difficult to extract, meaty thoughts lying in some back of beyond corners of our brains. Thoughts yellowing with age like a smokers teeth, thoughts bellowing with rage like a bull in heat. These thoughts await action, much like our teeth await a round of dental floss.

Call it mental floss!

Some of these thoughts have just hung around there. Much like those adolescent boys who loafed around Pandey's house, waiting to take a glimpse (pun intended) of his nubile, and must I add, half his age wife's antics with her pallu.

Some other thoughts hide in street corner "chai ki tapri" of our brains, their laughter carried to heavens in shared cigarette smokes, stirred to perfection in "by2" tea glasses, wrapped in parcels of yesterday's newspapers.

There are those occasional thoughts that get flushed down the banal toilets of our minds, having churned to a mess.

Above all, however, remain those thoughts, that got flesh in those sultry summer nights when even a touch of one's beloved would have burnt a hole in the skin. Thoughts that came and went under starlit skies, with a table fan, a 100watts light bulb, unfinished homework, a whiskey bottlefull of water and some dreams for company. These are the thoughts that defined the transition from boy to man, from colt to stallion and from dreamer to doer.

When thoughts become mildewed, and actions become damp, that is the time for a moment in the sun!

Saturday, February 22, 2014

हर राख़ के सीने में होती है चिंगारी

हर राख़ के सीने में होती है चिंगारी।
बस फूँक मारो दोस्तों और आंदोलन बन जाए।।
उठते हुए धुएँ में कुछ ख़यालों के ज़नाजे हैं। 
कब क़त्ल हुए ख़वाब, कब दफन हुए साज़।।

तिरंगा बनाने में तुम खर्चो न कपड़े।
धरती के सीने में बिछाओ चादर।।
बच्चे ना  बर्फ़ हो, माएँ न नँगी ।
आज़ादी का असली तुम परचम लहराओ ।।

बापू, बापू कर कब तक नाचोगे ।
जब बच्चे अभी भी अनाथ हैं।।
क्या चाचा, क्या नेहरू कहते हो ।
बस सिगनल पर  अठन्नी मार आओ ।।

आज़ फ़िर नमक के ढेर लगेंगे।
आज़ फ़िर  देखो आयेगी क्रांति ।।
बस भगत सिंह कि तस्वीर को।
आज़ उतर दीवार से चलना है ।।