Thursday, April 21, 2011

IF - रुडयार्ड किपलिंग की यादगार कविता

अगर सर अपना रख सको ऊँचा
जब सभी के सर नीचे हो और वजह तुम हो ये कहें,
जब खुद पे कर सको भरोसा उनके शक के दर्मेयाँ
और पूछ सको उनसे उनके शक की वजह भी।
जब कर सको इंतज़ार बिना थके, बिना रुके,
झूठ को जब तुम सच न बनाओ, और नफरत तुम्हारी फितरत न हो,
जब तुम ज़रुरत से ज्यादा न बनो, न दिखो। ।

जब तुम देखो सपने, पर उनमे खो न जाओ
जब तुम सोचो पर तुम्हारी सोच ही न मंजिल हो तुम्हारी,
जब सफलता और असफलता दोनों ही एक से लगे
और तुम्हारे सच का झूठ बनते देख सको तुम,
जब तुम्हारा पूरा जीवन तुम्हारे आगे बिखर जाये
और फिर टूटे हुए औजारों से उसे जोर सको तुम। ।

अगर अपनी तमाम ज़िन्दगी को जुए की तरह हार सको
और फिर से कर सको सुरुआत उसकी,
बिना कुछ कहे, कुछ सोचे।
और बेजान जिस्म को कह सको की थोडा और रुक के अभी
काम और भी हैं ज़माने में करने के लिए। ।

अगर भीड़ में भी उतने ही तुम तुम हो
और रजवारों में भी तुम तुम हो,
अगर न दोस्त, न दुश्मन तुम्हे हरा सकें
और हर इंसान तुम्हारा हो पर ज्यादा नहीं,
अगर हर मिनट में तुम रख सको लम्हों का हिसाब
दुनिया ये तुम्हारी है और तुम
हो गए हो बड़े मेरे बेटे । ।