Tuesday, April 29, 2014

तोड़ दो ताजमहल तुम मेरे दोस्तों

तोड़ दो ताजमहल तुम मेरे दोस्तों,
बनाया  इसे  एक  मुसलमां  ने है।
प्राचीन  ग्रंथों में  लिखा  है  कहीं,
कि  मोहब्बत  के माथे  पे  तिलक लगा है।

जला  दो ग़ालिब  के  नग़मे  सभी,
कमबख्त  क्यूँ  कर  प्यार  की  दुहाई  है  देता।
कविताएँ  दफ़ना  दो हर  उस  शायर की,
जिसके मस्ज़िद मे शिव और  मन्दिर में ख़ुदा है ।

खूबसूरती  को  बेदर्दी  से  कुचलोगे  जब,
फिर मज़हब  के  अनोखे  फूल  खिलेंगे।
अभी  तो हमारे  आँगन  में दोस्त ,
इश्क  का  बेकार  बागीचा  लगा  है।।




 

Musings...

बाल  पकते गए , ज़वानी  हाथ  से  फिसलती  रहीं ,
हम  फ़िर भी  बचपन  की  ऊँगली  पकड़  कर  चलते  रहे।

कुछ  ख्वाब  ऊंघ  रहे  थे  चौखट  पे  बैठ ,
और  अरमान  ऐसे  थे   कि करवट  बदलते  रहे।

जान  आती  कहाँ  से  है   जोशीले  साँसों  में ,
कि  ठहाके  फेफड़ों  में  उबलते  रहे।

और  बनाओ  हमें  न  सिकंदर  दोस्तों ,
हम तो  यूँ  ही  यलग़ारों  में  बहलते  रहें।

Tuesday, April 1, 2014

zindagi ko to bahna hi hai!

बीते  हुए  कल  की  यादें  बसी  हैं  इनमें ,
ज़ुल्फ़ों  की  सफ़ेदी  को  यूँ  छुपाया  न  कीजे।

त्वचा  की  हर  सिलवट मे बसेरा  है  मेरी  छुअन  का,
की  याद  उन्हे कर  के  यूँ  शर्मायान  कीजे।

कभी रूठने  मनाने  का  सिलसिला  जी  के  देंखे ,
यूँ  हमे देख  के हमेशा  मुस्कुराया  न  कीजे।

साख़  से  सूखे  पत्ते  से  गिर  जायेंगे  एक  दिन ,
मौत  जो  सच  है  उस  से  दामन  छुड़ाया  न  कीजे।