Tuesday, September 8, 2015

न स्याही मेरे संग चली और न शब्दों ने दिया साथ


न स्याही मेरे संग चली और न शब्दों ने दिया साथ,
अपनी तो थकी थकी सी ही गुज़री हर रात। 
माँ के तो हाथ भी न काँपे थे सुबह फावड़ा थमाने में
उसे भी कौन सी मिली थी किताबें इस ज़माने में।

मेरी बनाई हुई ईंटें तो चली जाती ही हैं स्कूल
तो क्या हुआ अगर मुझको ही वो जातीं हैं भूल।
मैं अकेला ही बेबस बेचारा तो नहीं
कितने ही तो है जिनको सहारा तो नहीं।

ऐ दरिया है तू और मैं समंदर हूँ तुम्हारा
रोको नहीं मुझको की मुकद्दर हूँ तुम्हारा।
बढ़ने दो,बढ़ने दो, मुझे बढ़ना है,बढ़ना है। 
पढ़ने दो, पढ़ने दो, मुझे पढ़ना है, पढ़ना है






मुमकिन ही नही की स्याही
चंद बूँदों में कलाम हो जाए।
कभी सोचा न था हमने भी
कि सूर्य डूबे भी न और शाम हो जाए।
बस इनसे सीखो तुम अपनी आज़ानो की रूह
तुम्हारी नमाज़ों का ख़ुदा भी घनश्याम हो जाए। 
कहते थे वो की जल जाओ सूरज की तरह
अगर चमकने की चाहत रखते हो सीने में।
और अच्छाईयों के कच्चे रास्तों में दौड़ कर
मिला दो अपना भी पसीना, पसीने में। 

Saturday, March 21, 2015

कदम कदम एक नयी मुलाकात गुज़रे।

तबस्सुम का स्वाद गज़ब है होठों पे मगर,
नमक आँसुओं के साथ गुज़रे,
शरबत-ए-ज़िन्दगी तुमको हो मुबारक,
अपना तो हर पल चटकारों के साथ गुज़रे।

मील के पत्थरों में खड़ी भीड़ है देखो,
पर सफ़र तो तन्हाईयों के साथ गुज़रे,
कभी न दो बूँद पानी हो होठों पे,
कभी तो चेहरे से देख बरसात गुज़रे।

अगर रास्ते फ़नाह हो फ़िर वो मंज़िल ही क्या,
अपना तो जीवन ही रास्तों के साथ गुज़रे,
चलना तो चलन है पथिक का दोस्तों,
कदम कदम उसकी एक नयी मुलाकात गुज़रे।

इतना सा फ़साना है। (Originally Twitted on March 4, 2015)

उम्मीदों को पहनो न यूँ ताबीज़ बना के,
दिल टूटने से बचने का ये नुस्खा पुराना है।
टूटने दो, बिखरने दो, बहने दो इन्हे ,
नई उम्मीदें पनपने का ये तो बस बहाना है।
अनकही बात न हो, अनछुई रात न हो,
दिलो को तोड़ दें ऐसे ज़ज़्बात न हो,
ज़िन्दगी का लिखा इतना सा फ़साना है।




ऐसी वफ़ा का क्या करें। (Originally Twitted on February 25, 2015)

मंज़िलों से इश्क करें सब,
पर रास्ता है हमसफ़र,
इस वफ़ा का क्या करें ,
ऐसी वफ़ा का क्या करें।

आसमा के आँचल के नीचे,
ख्वाबों के सेज़ तो सज ही जातें हैं,
एक उम्मीद ही पर हमसफ़र,
ऐसी वफ़ा का क्या करें।

कुछ मंज़िलें हैं रूठ गईं,
कुछ उम्मीदें भी छूट गईं,
पर हर साँस गले मिलती हैं हँसकर,
ऐसी वफ़ा का क्या करें।


मोहब्बत हर लम्हा (Originally Twitted on January 20, 2015)

आँखों से छलकती रही मोहब्बत हर लम्हा,
साँसों में महकती रही मोहब्बत हर लम्हा ,
ख़्वाहिशों से करो न तुम उम्र का हिसाब ,
घरों में जमा हो मोहब्बत हर लम्हा।

चहकती रही चिड़िया तूने न सुनी,
सुबह की धुप भी चेहरे पे न ली,
अंगड़ाईयों जम्हाईयों में न गुज़ारा एक दिन,
फ़िर भी कहते हो गुज़ारा हर लम्हा।



फूलों के रंग से (Originally Twitted on Dec 6, 2014)

हिन्दू फूल खिला दे माली,
मुस्लिम फूल खिला दे तू ,
दोनों के रंग अलग अलग हों ,
हो दोनों की अलग खुश्बू।
 
उस दरख़्त में पानी डाल,
जिसकी एक दिन चिता जले
और पानी डाल उस दरख़्त में तू ,
जिसकी क्रूस उठा कर ईसा चले।

उफ़ पानी डाला तूने माली,
मेरे पौधे में ग़ैर मज़हब का,
गंगा शदियों से हिन्दू है,
टाइबर बना क्रिस्चियन कब का। 

इस काली रात सो जाओ माली ,
कल फ़िर एक नया दिन है ,
धर्म अधर्म कि बाँट छांट है ,
सूर्योदय देख आज़ाद लेकिन है।