Thursday, December 15, 2011

Dreams

एक ख़्वाब की चौखट पे सर रख के अपना सो गए,

सोचा नहीं की ऐसे तो ख़्वाबों के और भी परिंदे उड़ जायेंगे!

न उलझे हुए यादों के टूटे से पिंजड़े, न कल की और बनते अधूरे से घोंसले,

बस आज ही के सपने और आज ही के ख़्वाब।

कभी पलकों के ऊपर उड़ते हुए ख़्वाब, कभी होठों के कोने पे लडखडाये से ख़्वाब

कभी क्यूंकि से ख़्वाब, कभी यूँही से ख़्वाब।

कभी माला में पिरोये हुए जीते से ख़्वाब,

कभी कल को छूटे हुए बीते से ख़्वाब,

कभी फूल में लिपटे हुए फूल से ख़्वाब,

कभी धुल में लिपटे हुए धुल से ख़्वाब।

ख़्वाबों को जिंदा रख, प्यारे हैं ख़्वाब,

जैसे भी हैं, हमारे हैं ख़्वाब।