Sunday, May 19, 2013

Life: A Journey


ज़िन्दगी की गहराई जो समझना चाहो
तो पहले उसकी लम्बाई की उलझन से निकलो।
न फूलों को झुक के देखा, न झूलों को रुक के देखा
ज़िन्दगी फिर भी जी है, इस सुलझन से निकलो।।

छोटे से पिल्ले ने जो पूंछ हिलायी
पुचकारो उसे, उस प्रियेतम को समझो।
न इमली ही तोड़ी, न तुमने अमिया बटोरी
फ़िर क्या है गाया उस सरगम को समझो।।

बारिश के पानी में की न जो छपछप
दिल में पड़ते हुए सूखे को जानो।
लटपट सी  भूख , तुम्हारी छटपट सी भूख
अपने अंदर मरते हुए भूखे को जानो।।

कहीं गर न जाना तुमने जो ये सब
अब तक जो  भटके उस दर दर को देखो।
आगे कभी पीछे, झाकों दायें कभी बाएं
होती हुई ज़िन्दगी जर्जर को देखो।।




 

Saturday, May 11, 2013

लज्जा कांड

सीता स्वयंवर काहे कीजे 
सभी तो रावण जैसे हैं।
पढ़े लिखे हैं, दशानन  हैं 
अक्ल के ऐसे वैसे हैं।।

काम में सभी के हाथ बझे हैं 
शिव धनुष कौन तोड़ेगा।
सज धज के जो बाहर निकली
तुम्हे नहीं कोई छोड़ेगा।।

वरमाला  के फूल सुखा दो 
रंग इनके सब काले हैं।
मुछों पे है जंग लगी 
और लगे मुँह पे ताले हैं।।

लक्ष्मण रेखा के दाएरे छोटे हैं 
उसके  बाहर आज़ादी है।
उस हवा में साँस न लेना 
वहाँ हैवानों की आबादी है।।

पकड़ी गई तो लाज बचाने 
गरुड़ यहाँ न पहुँचेंगे।
गिद्ध है  सारे , गरुड़ नहीं हैं
मांस तुम्हारा  नोचेंगे।।

आधी अधूरी कहीं बच गयी तुम
तो रोज़ परखी पकड़ी जाओगी।
अभागी, बेचारी, अबला संबोधन मे 
निर्भया बन जकड़ी जाओगी।।