Thursday, November 28, 2013

जाने दो यादों को, इन्हे रोको नहीं

जाने दो यादों को, इन्हे  रोको नहीं,
बहोत दूर इन्हे अभी चलना पड़ेगा।
कुछ इस रास्ते बिखरेंगे,
कुछ उस रास्ते बिछड़ेंगे,
कुछ को मन ही में टहलना पड़ेगा।

 
कुछ भूले हुए दोस्तों के अधूरे से याद,
कुछ चेहरे, कुछ गलियां,
कुछ सड़कें आज़ाद,
 खयालों, ख्वाबों कि अंगराईओं में,
इन सभी को करवट बदलना पड़ेगा।
 
होठों के कोने में मुस्कराती हुई  याद,
पलकों के कोने में छलछलाती हुयी याद,
ठहाकों कि गूँजे या
आँसू कि बूंदे बन,
दोनो को टप टप टपकना पड़ेगा।



किताबों के पन्नों में रखे हुए याद,
मनमोर बन बारिश में नाचा  करेंगे,
कुछ नाव  चलेंगे, कुछ पाँव चलेंगे,
उस वक़्त यादों कि पोटली संभाले,
राही तुम्हे दूर निकलना पड़ेगा।


यादों के बिस्तर पे, यादें लपेटे 
यादों के सपने देखा करेंगे,
परदे में उलझी चाँदनी छुड़ाके
तकिये पे तेरी फ़ेंका करेंगे 
यादों की चुंबन से खुद को बचाने 
बाँहों में मेरी तुमको मचलना पड़ेगा।
 

Saturday, July 20, 2013

ज़िन्दगी की प्याली में उंगली डूबो कर

ज़िन्दगी की प्याली में उंगली डूबो कर
एक  एक कर चाटो और ठेंगे तक पहुँचो।
चटकारे लो, डकारें लो, और जीभ डालकर
प्याली की तुम, हो सके तो पेंदे तक पहुँचो।।

विचलित बादल के विचरण के भीतर की
जमी हुई बारिश तक पहुँचो।
सूखे पत्तों के भीतर घिर आई
बूंदों की गुज़ारिश तक पहुँचो।।

दिल पर उभरी गांठो को जो
चाहिए उस थप थप थप थपकन तक पहुँचो।
सर पर बिखरे सफ़ेद बालों से
झांकते हुए बचपन तक पहुँचो।।

भागो मिलखा ज़रूर यहाँ तुम
पर कभी जम्हाईयों, अंगराईयों तक पहुँचो।
और कभी कहीं न पहुँचो तो
पहुँचने की तुम कोशिश तक पहुँचो।।



 

Sunday, May 19, 2013

Life: A Journey


ज़िन्दगी की गहराई जो समझना चाहो
तो पहले उसकी लम्बाई की उलझन से निकलो।
न फूलों को झुक के देखा, न झूलों को रुक के देखा
ज़िन्दगी फिर भी जी है, इस सुलझन से निकलो।।

छोटे से पिल्ले ने जो पूंछ हिलायी
पुचकारो उसे, उस प्रियेतम को समझो।
न इमली ही तोड़ी, न तुमने अमिया बटोरी
फ़िर क्या है गाया उस सरगम को समझो।।

बारिश के पानी में की न जो छपछप
दिल में पड़ते हुए सूखे को जानो।
लटपट सी  भूख , तुम्हारी छटपट सी भूख
अपने अंदर मरते हुए भूखे को जानो।।

कहीं गर न जाना तुमने जो ये सब
अब तक जो  भटके उस दर दर को देखो।
आगे कभी पीछे, झाकों दायें कभी बाएं
होती हुई ज़िन्दगी जर्जर को देखो।।




 

Saturday, May 11, 2013

लज्जा कांड

सीता स्वयंवर काहे कीजे 
सभी तो रावण जैसे हैं।
पढ़े लिखे हैं, दशानन  हैं 
अक्ल के ऐसे वैसे हैं।।

काम में सभी के हाथ बझे हैं 
शिव धनुष कौन तोड़ेगा।
सज धज के जो बाहर निकली
तुम्हे नहीं कोई छोड़ेगा।।

वरमाला  के फूल सुखा दो 
रंग इनके सब काले हैं।
मुछों पे है जंग लगी 
और लगे मुँह पे ताले हैं।।

लक्ष्मण रेखा के दाएरे छोटे हैं 
उसके  बाहर आज़ादी है।
उस हवा में साँस न लेना 
वहाँ हैवानों की आबादी है।।

पकड़ी गई तो लाज बचाने 
गरुड़ यहाँ न पहुँचेंगे।
गिद्ध है  सारे , गरुड़ नहीं हैं
मांस तुम्हारा  नोचेंगे।।

आधी अधूरी कहीं बच गयी तुम
तो रोज़ परखी पकड़ी जाओगी।
अभागी, बेचारी, अबला संबोधन मे 
निर्भया बन जकड़ी जाओगी।।






 
 

Saturday, February 16, 2013

New Age of Innocence

Cars were small and rented
And it was alright
Scooters were Bajaj
Frequently dented, seldom painted
Heads were high, backs upright
फ़िर क्या हो गया आज।

Homes must be 3BHK
2000sqft or more
Jacuzzis in the bathroom
Shower panels, buckets no way
Carpets on the floor
सर गया है घुम।

More is no more, more
Rest in peace it must
Can't make do with less
More walks in through the door
Dust, finally will become dust
मौत सच है , मौत अवशेष।

New age of innocence
Will rise from the ashes
Once, we burn away the fat
Of falsehood and nonsense
Away the dark night washes
जब गिरेगी अच्छे दिन की बरसात।