Saturday, August 9, 2014

लुटे तन और टूटे मन को जो ढक दे, वो कपड़ा ही झंडा है बढ़िया।

सातों रंग भगवान के हैं ,
फ़िर कौन सा पहनू आज पिया ,
आज हरियाली ओढूँ की मैं,
बन जाऊं जोगन पहन केसरिया।

श्वेत रंग तो इ उमर में
हो सकता ना पहचानू मैं,
चहु दिशा है खून की होली,
न्याय चक्र न जानू मैं।

इ दिन न वो है,इ देश वो ना है
जहाँ मिले मोहे सांवरिया।

जन गण मंगल अभी है बाकी
आज भी मैली गंगा है,
घर-घर-बस्ती एक अलग है झाँकी
यहाँ कहाँ तिरंगा है।

साफ़ मन का कोई रंग चढ़ा ले
वही रंग फिर रंगा है बढ़िया।

और देखो तिरंगे के पीछे कैसे
आज हर कोई मुँह छुपाये है ,
कैसे कैसे , जाने कहाँ कहाँ
चवन्नी भर देशभक्ति लहराए है.

लुटे तन और टूटे मन को जो ढक दे
वो कपड़ा ही प्रिय झंडा है बढ़िया।