मन ही गीता , मन ही बाइबल, मन मेरा कुरान,
गुरु ग्रन्थ साहिब मन है मेरा, मन ही वेद पुराण।
मन ही गिरिजा, मन गुरुद्वारा, मन में राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े हैं।
आरती गाओ, नमाज़ पढो तुम, सुन लो तुम अज़ान
हिंदू हो तुम, या हो मुस्लिम, मिल जायेंगे भगवान।
मन की पूजा ही असली पूजा, मन में राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े हैं।
अल्लाह है वो, जीजस वो, वो ही किसन कन्हैया है,
ढाई हाथ ज़मीं क्या उसको, जो इस जग के ही रचैया हैं।
मन से मन का मेल करो तुम, मन में राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े है।
पशु पवन और हर बच्चे बेलों में, कबसे बसते हैं भगवान,
फिर पत्थर की मूरत में जाने क्या, खोज रहा इंसान।
मन में मुरख बसा तू इनको, इनमे राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े है।
This Blog is a commentary on the mundaneness we chase while ignoring far more important things in life.
Thursday, September 30, 2010
Saturday, September 25, 2010
बरसात की एक रात
जम कर बरसी व्याकुल बरसात
और भिगो गयी तन को भी, मन को भी
अँधेरी अनोखी अजब सी ये रात
भीगती रही और हंसती रही।
तारे दिखे नहीं तो क्या
चाँद नज़र न आया, न सही
और भी बेहतर कुछ मिल गया
ऐसा भी होता है कभी,कभी।
कुछ हम भीगे, कुछ तुम भीगी
कुछ भींग गया आसमान
यूँ ही भीगने, भागने में
बरस गए कई अरमान।
बस यूँ ही ये बदल बरसते रहे
यूँ ही तो होती रहे बरसात
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहे
और कभी न बीते ये अनोखी रात।
और भिगो गयी तन को भी, मन को भी
अँधेरी अनोखी अजब सी ये रात
भीगती रही और हंसती रही।
तारे दिखे नहीं तो क्या
चाँद नज़र न आया, न सही
और भी बेहतर कुछ मिल गया
ऐसा भी होता है कभी,कभी।
कुछ हम भीगे, कुछ तुम भीगी
कुछ भींग गया आसमान
यूँ ही भीगने, भागने में
बरस गए कई अरमान।
बस यूँ ही ये बदल बरसते रहे
यूँ ही तो होती रहे बरसात
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहे
और कभी न बीते ये अनोखी रात।
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