Tuesday, September 8, 2015

मुमकिन ही नही की स्याही
चंद बूँदों में कलाम हो जाए।
कभी सोचा न था हमने भी
कि सूर्य डूबे भी न और शाम हो जाए।
बस इनसे सीखो तुम अपनी आज़ानो की रूह
तुम्हारी नमाज़ों का ख़ुदा भी घनश्याम हो जाए। 
कहते थे वो की जल जाओ सूरज की तरह
अगर चमकने की चाहत रखते हो सीने में।
और अच्छाईयों के कच्चे रास्तों में दौड़ कर
मिला दो अपना भी पसीना, पसीने में। 

No comments: