Sunday, August 26, 2012

Yehin...Kahin...Yekin

ज़रूरी नहीं कि वो मिल जाए
यकीन न हो तो उनको पूछ
ज़ेरोक्स कॉपी जो जिये किसी और की ज़िंदगी
वापस न खुद को ढूँढ पाए
विस्तार  आसमान तलाशते हुए
उनको मिली नहीं अपनी ही ज़मीं.
तनिक रुकते ज़रा के क्या चाहिये
सोचते  के ज़िंदगी खर्च करें तो कैसे
रुपये कमाने मे क्या रूह बेची कहीं
क़यामत के आने पर, सोचा क्या जायेगा साथ
पहचान कमायी क्या अपने लिए
ओछेपन में ही या बिताए ये लम्हें.
नादानिया की, और बने होशियार
मिले ना खुद से, पर देखा ज़माना
लाख रुपये की जिंदगी
किश्तों में बेची यहीं कहीं.
जिसने भी चाहा है उसको है बेचा
इसको बेचा और उसको भी बेचा
हम कहीं मैं में गुम हुए
गुम हुए जो अपने थे.
फ़नाह हुए जो सपने थे
एकाकी हुए, हम अपनो मे
दोस्ती टंग गई फेसबुक के वाल मे
चलो उतारें उसे उस वाल से
भिगोए कपड़े से पोछे उसे
और ओढ़ के उसको निकल पड़े बस...


No comments: