अल्लाह भी मेरा, मेरा है राम
बन्दे की बंदगी मेरा है काम
जहां घुटने टिकाए हमने ऐ दोस्त ,
वो ज़मीन ही मस्ज़िद हमारी हुई।
कुछ आँसू है पोछे, मुस्कान बटोरे
इन्सानियत के हमने रोज़े रखे ,
फ़िर तो हर लौ , हर रौशनी
हमे चाँद ही सी लगी।
माँ ने कहा था एक बार हमे ,
स्याही का मज़हब है होता अनोखा,
चली थी वो गीता में हिन्दू मगर
कुराण जा बसी तो मुसलमां हुई।
अनजानों ने आज़ानों में ढूँढा उसे ,
पत्थर के भगवानों में ढूँढा उसे ,
प्रभाष जो बैठा फूलों में , झूलों में ,
कोयल की कुहू इबादत सी लगी।
बन्दे की बंदगी मेरा है काम
जहां घुटने टिकाए हमने ऐ दोस्त ,
वो ज़मीन ही मस्ज़िद हमारी हुई।
कुछ आँसू है पोछे, मुस्कान बटोरे
इन्सानियत के हमने रोज़े रखे ,
फ़िर तो हर लौ , हर रौशनी
हमे चाँद ही सी लगी।
माँ ने कहा था एक बार हमे ,
स्याही का मज़हब है होता अनोखा,
चली थी वो गीता में हिन्दू मगर
कुराण जा बसी तो मुसलमां हुई।
अनजानों ने आज़ानों में ढूँढा उसे ,
पत्थर के भगवानों में ढूँढा उसे ,
प्रभाष जो बैठा फूलों में , झूलों में ,
कोयल की कुहू इबादत सी लगी।
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