Saturday, November 29, 2014

उन्नीस अगस्त की एक रचना

एक छोटी सी ज़िन्दगी में
उम्र भर का हो एहसास,
इसमें इतनी जान ऐ जानम,
ख़ुदा ने है डाली या तुम ही ख़ुदा हो।

एक पलक  के सपने में कितनी हैं बातें
लम्हों की कड़ियों में, कितने है बंधन ,
पलकों को हमने रोके रखा है
ख्वाबों के दरम्यां,न यादें जुदा हों।

यादों के दरिया में यूँ ,
पत्थर न फेंकों तुम ,
गर तूफ़ान उठे तो किनारे बहेंगे
गर किनारे बहे तो सब नजारें बहेंगे।

ज़िन्दगी ने फिर कहा , आ तेरे लब चूम लूँ ,
और दो फूलों ने फिर आलिंगन किया।
बस तितलियाँ यूँ ही पलकती रहें,
कोयल की कूहू न गुमशुदा हो।



 

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