Sunday, November 30, 2014

सामने जलती चिता हो मेरी

हर कदम चलो तुम ऐसे,
के आंदोलन का एहसास हो,
पर हर कदम रखो तुम ऐसे,
न टूटी एक घास हो।

हर पल तुम जियो की जैसे,
कुछ जी लेने की प्यास हो ,
हर पल मगर जियो तुम ऐसे
के हर पल ली एक साँस हो।

कश्ती दरिया में यूँ खेना मांझी,
मानो समन्दर की तलाश हो,
पर दरिया के इस आलिंगन में कश्ती को,
किनारे का भी आभास हो।

पल पल पल पल के इस जीने में ,
मौत का पल भी ख़ास हो,
सामने जलती चिता हो मेरी,
और पीछे लिखा इतिहास हो। 

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