तोड़ दो ताजमहल तुम मेरे दोस्तों,
बनाया इसे एक मुसलमां ने है।
प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कहीं,
कि मोहब्बत के माथे पे तिलक लगा है।
जला दो ग़ालिब के नग़मे सभी,
कमबख्त क्यूँ कर प्यार की दुहाई है देता।
कविताएँ दफ़ना दो हर उस शायर की,
जिसके मस्ज़िद मे शिव और मन्दिर में ख़ुदा है ।
खूबसूरती को बेदर्दी से कुचलोगे जब,
फिर मज़हब के अनोखे फूल खिलेंगे।
अभी तो हमारे आँगन में दोस्त ,
इश्क का बेकार बागीचा लगा है।।
बनाया इसे एक मुसलमां ने है।
प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कहीं,
कि मोहब्बत के माथे पे तिलक लगा है।
जला दो ग़ालिब के नग़मे सभी,
कमबख्त क्यूँ कर प्यार की दुहाई है देता।
कविताएँ दफ़ना दो हर उस शायर की,
जिसके मस्ज़िद मे शिव और मन्दिर में ख़ुदा है ।
खूबसूरती को बेदर्दी से कुचलोगे जब,
फिर मज़हब के अनोखे फूल खिलेंगे।
अभी तो हमारे आँगन में दोस्त ,
इश्क का बेकार बागीचा लगा है।।
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