बाल पकते गए , ज़वानी हाथ से फिसलती रहीं ,
हम फ़िर भी बचपन की ऊँगली पकड़ कर चलते रहे।
कुछ ख्वाब ऊंघ रहे थे चौखट पे बैठ ,
और अरमान ऐसे थे कि करवट बदलते रहे।
जान आती कहाँ से है जोशीले साँसों में ,
कि ठहाके फेफड़ों में उबलते रहे।
और बनाओ हमें न सिकंदर दोस्तों ,
हम तो यूँ ही यलग़ारों में बहलते रहें।
हम फ़िर भी बचपन की ऊँगली पकड़ कर चलते रहे।
कुछ ख्वाब ऊंघ रहे थे चौखट पे बैठ ,
और अरमान ऐसे थे कि करवट बदलते रहे।
जान आती कहाँ से है जोशीले साँसों में ,
कि ठहाके फेफड़ों में उबलते रहे।
और बनाओ हमें न सिकंदर दोस्तों ,
हम तो यूँ ही यलग़ारों में बहलते रहें।
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