हिन्दू फूल खिला दे माली,
मुस्लिम फूल खिला दे तू ,
दोनों के रंग अलग अलग हों ,
हो दोनों की अलग खुश्बू।
उस दरख़्त में पानी डाल,
जिसकी एक दिन चिता जले
और पानी डाल उस दरख़्त में तू ,
जिसकी क्रूस उठा कर ईसा चले।
उफ़ पानी डाला तूने माली,
मेरे पौधे में ग़ैर मज़हब का,
गंगा शदियों से हिन्दू है,
टाइबर बना क्रिस्चियन कब का।
इस काली रात सो जाओ माली ,
कल फ़िर एक नया दिन है ,
धर्म अधर्म कि बाँट छांट है ,
सूर्योदय देख आज़ाद लेकिन है।
मुस्लिम फूल खिला दे तू ,
दोनों के रंग अलग अलग हों ,
हो दोनों की अलग खुश्बू।
उस दरख़्त में पानी डाल,
जिसकी एक दिन चिता जले
और पानी डाल उस दरख़्त में तू ,
जिसकी क्रूस उठा कर ईसा चले।
उफ़ पानी डाला तूने माली,
मेरे पौधे में ग़ैर मज़हब का,
गंगा शदियों से हिन्दू है,
टाइबर बना क्रिस्चियन कब का।
इस काली रात सो जाओ माली ,
कल फ़िर एक नया दिन है ,
धर्म अधर्म कि बाँट छांट है ,
सूर्योदय देख आज़ाद लेकिन है।
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