काश कभी ऐसा भी होता,
के ख्वाबों के बाग़ीचे होते।
हर सूखे ख्वाब का गुलदस्ता फ़ेंक
नए ख्वाब सज़ा लेते हम।
दो पत्थर मार तोड़ लेते ख्वाब
कुछ पके हुए , कुछ अधकच्चे से।
कुछ लार टपका , कुछ नमक लगा
अमिया ख्वाबों की खा लेते हम।
दो रस्सी बाँध एक शाख पे हम
ख्वाबों के झूले सज़ा लेते।
कुछ ख्वाबों के गाने गुनगुनाते और
कुछ गज़लें ख्वाबों की गा लेते हम।
ऐसा बाग़ीचा एक ही है पर
वो दिल का हमारा कोना है।
दो दिल होते सीने मे तो
हर ख्वाब की कॉपी बना लेते हम।
के ख्वाबों के बाग़ीचे होते।
हर सूखे ख्वाब का गुलदस्ता फ़ेंक
नए ख्वाब सज़ा लेते हम।
दो पत्थर मार तोड़ लेते ख्वाब
कुछ पके हुए , कुछ अधकच्चे से।
कुछ लार टपका , कुछ नमक लगा
अमिया ख्वाबों की खा लेते हम।
दो रस्सी बाँध एक शाख पे हम
ख्वाबों के झूले सज़ा लेते।
कुछ ख्वाबों के गाने गुनगुनाते और
कुछ गज़लें ख्वाबों की गा लेते हम।
ऐसा बाग़ीचा एक ही है पर
वो दिल का हमारा कोना है।
दो दिल होते सीने मे तो
हर ख्वाब की कॉपी बना लेते हम।
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