Saturday, March 21, 2015

ऐसी वफ़ा का क्या करें। (Originally Twitted on February 25, 2015)

मंज़िलों से इश्क करें सब,
पर रास्ता है हमसफ़र,
इस वफ़ा का क्या करें ,
ऐसी वफ़ा का क्या करें।

आसमा के आँचल के नीचे,
ख्वाबों के सेज़ तो सज ही जातें हैं,
एक उम्मीद ही पर हमसफ़र,
ऐसी वफ़ा का क्या करें।

कुछ मंज़िलें हैं रूठ गईं,
कुछ उम्मीदें भी छूट गईं,
पर हर साँस गले मिलती हैं हँसकर,
ऐसी वफ़ा का क्या करें।


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