This Blog is a commentary on the mundaneness we chase while ignoring far more important things in life.
Saturday, October 1, 2011
Sweet 60!
Saturday, July 23, 2011
Chin Up!
ज़िन्दगी किनारों पे बैठ कर नहीं जिया करते ।
गर सांस का आना ज़िन्दगी है तो सांस का जाना भी ज़िन्दगी है ।
फेफड़ों में भरके हवा होंठ नहीं सिया करते ।
लौ अगर जली ही नहीं कि जल जाऊँगी, तो उसकी किस्मत में बस अँधेरा है ।
बुझे बुझे से दिये रौशनी नहीं दिया करते ।
धूप से डरता है तू तो उजाला क्या देखेगा ।
धूप के बिना तो पेड़ छाओं भी नहीं किया करते ।
Wednesday, May 4, 2011
Cyclic Reference - Much Ado About Nothing
The pullup ring that hangs down from the jackfruit tree still exists,though the rope is frayed,
The koel still sings atop the neem tree, all she needs to say is already said.
The drumsticks in season still flowers,
And the pomegranate falls in that well of ours.
Sparrows sometimes still fall in the well, no one drops a bucket to pull them out,
Poor souls thrash and gulp and drown, can't for help even shout.
Guava Rots and falls amidst thunder showers,
And chickens lay egg in that backyard of ours!
Friends walk past, don't even glance for fear,
They just might see some ghosts of those past years,
They bow their heads and walk past those flowers,
That still bud, in those rose bushes of ours.
Must move on, time can't stay...
Memories fade and hair turns gray.
Must learn to live life by the hour,
And fake it in our Ivory Towers!
Thursday, April 21, 2011
IF - रुडयार्ड किपलिंग की यादगार कविता
जब सभी के सर नीचे हो और वजह तुम हो ये कहें,
जब खुद पे कर सको भरोसा उनके शक के दर्मेयाँ
और पूछ सको उनसे उनके शक की वजह भी।
जब कर सको इंतज़ार बिना थके, बिना रुके,
झूठ को जब तुम सच न बनाओ, और नफरत तुम्हारी फितरत न हो,
जब तुम ज़रुरत से ज्यादा न बनो, न दिखो। ।
जब तुम देखो सपने, पर उनमे खो न जाओ
जब तुम सोचो पर तुम्हारी सोच ही न मंजिल हो तुम्हारी,
जब सफलता और असफलता दोनों ही एक से लगे
और तुम्हारे सच का झूठ बनते देख सको तुम,
जब तुम्हारा पूरा जीवन तुम्हारे आगे बिखर जाये
और फिर टूटे हुए औजारों से उसे जोर सको तुम। ।
अगर अपनी तमाम ज़िन्दगी को जुए की तरह हार सको
और फिर से कर सको सुरुआत उसकी,
बिना कुछ कहे, कुछ सोचे।
और बेजान जिस्म को कह सको की थोडा और रुक के अभी
काम और भी हैं ज़माने में करने के लिए। ।
अगर भीड़ में भी उतने ही तुम तुम हो
और रजवारों में भी तुम तुम हो,
अगर न दोस्त, न दुश्मन तुम्हे हरा सकें
और हर इंसान तुम्हारा हो पर ज्यादा नहीं,
अगर हर मिनट में तुम रख सको लम्हों का हिसाब
दुनिया ये तुम्हारी है और तुम
हो गए हो बड़े मेरे बेटे । ।
Thursday, September 30, 2010
क्या मंदिर है, क्या मस्जिद है.
गुरु ग्रन्थ साहिब मन है मेरा, मन ही वेद पुराण।
मन ही गिरिजा, मन गुरुद्वारा, मन में राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े हैं।
आरती गाओ, नमाज़ पढो तुम, सुन लो तुम अज़ान
हिंदू हो तुम, या हो मुस्लिम, मिल जायेंगे भगवान।
मन की पूजा ही असली पूजा, मन में राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े हैं।
अल्लाह है वो, जीजस वो, वो ही किसन कन्हैया है,
ढाई हाथ ज़मीं क्या उसको, जो इस जग के ही रचैया हैं।
मन से मन का मेल करो तुम, मन में राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े है।
पशु पवन और हर बच्चे बेलों में, कबसे बसते हैं भगवान,
फिर पत्थर की मूरत में जाने क्या, खोज रहा इंसान।
मन में मुरख बसा तू इनको, इनमे राम विराजे हैं,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे सब, उसके ही दरवाज़े है।
Saturday, September 25, 2010
बरसात की एक रात
और भिगो गयी तन को भी, मन को भी
अँधेरी अनोखी अजब सी ये रात
भीगती रही और हंसती रही।
तारे दिखे नहीं तो क्या
चाँद नज़र न आया, न सही
और भी बेहतर कुछ मिल गया
ऐसा भी होता है कभी,कभी।
कुछ हम भीगे, कुछ तुम भीगी
कुछ भींग गया आसमान
यूँ ही भीगने, भागने में
बरस गए कई अरमान।
बस यूँ ही ये बदल बरसते रहे
यूँ ही तो होती रहे बरसात
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहे
और कभी न बीते ये अनोखी रात।
Monday, August 23, 2010
Who moved my Curd Rice
Saturday, June 5, 2010
एक सड़क की कहानी
ये सोच कर सामने मंजिल है
कुछ और चले तो पता चला
के रास्ता ही मंजिल है।
कुछ दूर तक अँधेरा है
कुछ और राह ये बोझिल है
बढे चलो तुम बढे चलो
आगे सड़क ये झिलमिल है।
रुको नहीं, मत ये सोचो
हमे यहाँ क्या हासिल है
चले चलो, तुम चले चलो
यहाँ कदम कदम एक मंजिल है।
अगर मिले कहीं दोराहे,
कोई एक राह पकड़ लेना
इस राह भी कोई मंजिल है
उस राह भी कोई मंजिल है।
अगर लगे एकाकी मन
और समझ न आये क्या करें
कुछ दोस्त तुम बना लेना
दोस्त यहाँ बड़े अच्छे है, दोस्त यहाँ दरियादिल हैं।
Saturday, May 8, 2010
Musings of a Bookworm
बहुतों से नहीं मिलते, न बहुत बार मिलते हैं
कहते हैं सब वही पुरानी बात हमसे
"क्या आज भी तुम रहते हो किताबों में आँखें गोते"
और हम कहतें हैं उनसे, अपने ही अन्दाज ये बयां में
वक्त के बीतने में, गुजरने में लम्हे
वक्त के बिखरने में, बिगढ़ने में लम्हे
हमेशा, हर जगह, एक से कहाँ होते?
मेज़ पर रखी उस पुरानी किताब के पन्ने
कभी खामोश होते हैं, कभी गर्म हवा में फरफराते हैं
कहते हैं हैं कभी दबी दबी जुबां से हमसे
आजकल क्यूँ नहीं अपनी छाती से हमे लगा के सोते
क्यूँ तुम लैपटॉप के पन्ने में अपनी
तक़दीर खोजते हुए, कभी टटोलते हुए
ज़िन्दगी कों माय दोकुमेंट्स के फोल्डर में फाइल करके
हुए जा रहे हो बस होते होते!
छह महीने से बुकशेल्फ मे एन्चंत्रेस ऑफ़ फ्लोरेंस
नयी नवेली दुल्हन सी बेचैन है अपने सुहागरात के लिए
कभी कुछ भी तो नहीं कहती, फिर भी
याद करते हैं उसे हम सोते सोते
कुछ किताबें ऐसी भी हैं जिनको पढ़ा है कुछ बाहर से
जिनके बारे मे न तो अनजान हैं न कुछ जानते हैं
न बेखबर है जिनसे, न पहचानते हैं
जो बस रह गयी बंद, शुरू होते होते !
कुछ किताबें तो ऐसी भी हैं, मन के किसी कोने मे बंद
जो लिखी ही नहीं, बस रह गयीं एक ख्याल बन कर,
इनके भी फसल लगाने के, काटने के लिए
कुछ नन्हे नन्हे से बीज होते, बीज होते, बीज होते!
Sunday, May 2, 2010
Bangalore to Kanyakumari Via Madurai and Rameshwaram
